‘मिह सेचने’ धातु से अच् प्रत्यय करने पर ‘मेह’ शब्द की निष्पत्ति होती है| ‘प्रकृष्टो मेह: यस्मिन् रोगे, स: प्रमेह |’ अर्थात् जिस रोग में मूत्र की अधिकता हो, उसे प्रमेह (Disease of Urine) कहते हैं| इसका प्रसिद्ध एवं सामान्य लक्षण है – ‘प्रभूताविलमूत्रता’ अर्थात् प्रमेह में मूत्र की मात्रा अधिक हो जाती है और उसका स्वरूप गंदला हो जाता है| ‘प्रमेहोऽनुषङ्गिणाम्’ के अनुसार यह जिसका पीछा पकड़ लेता है, उसको शीघ्रता से नहीं छोड़ताएवं उपेक्षा करने पर यही प्रमेह ‘मधुमेह’ का रूप धारण कर लेता है|
आयुर्वेदीय ग्रन्थ चरकसंहिता में 20 प्रकार के प्रमेहों का वर्णन प्राप्त होता है|१
आचार्य चरक के अनुसार ये 20 प्रकार के प्रमेह निम्नलिखित हैं :
(क) कफज प्रमेह :
1. उदकमेह
2. इक्षुवालिकारसमेह
3. सान्द्रमेह
4. सान्द्रप्रसादमेह
5. शुक्लमेह
6. शुकमेह
7. शीतमेह
8. सिकतामेह
9. शनैमेह
10. आलालमेह|
(ख) पित्तज प्रमेह :
11. क्षारमेह
12. कालमेह
13. नीलमेह
14. लोहितमेह
15. माजिंप्रमेह
16. हास्द्रिमेह |
(ग) वातज प्रमेह :
17. वसामेह
18. मज्जमेह
19. हस्तिमेह एवं
20. मधुमेह |
मधुमेह को इन्हीं प्रमेहों में वातज प्रमेह के अन्तर्गत लिया जाता है| यदि यह कहा जाए कि 19 प्रकार के प्रमेह एक तरफ एवं मधुमेह अकेला एक तरफ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी|
आचार्य सुश्रुत का कथन है कि सभी प्रमेह योग्य चिकित्सा के अभाव में मधुमेह में परिवर्तित हो जाते हैं, तत्पश्चात् यह असाध्य हो जाता है, जो कि व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता है|
यह एक ऐसा रोग है, जो कि बालक से लेकर वृद्ध तक किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को हो सकता है| मधुमेह का शाब्दिक अर्थ है, ‘मधु अर्थात् शहद एवं मेह अर्थात् बहना’ अर्थात् जिस रोग में मधु अथवा शहद या शक्कर युक्त पदार्थ मूत्र के साथ विसर्जित होता है, वह मधुमेह है| इसे देहाती भाषा में ‘चिनिया’ अथवा ‘शक्कर की बीमारी’ भी कहा जाता है| इसे आंग्लभाषा में ‘डायबिटीज’ तथा चिकित्सकीय भाषा में ‘डाइबिटीज मेलीटस’ अथवा ‘ग्लाइकोजूरिया’ कहा जाता है|
हमारे आयुर्वेद चिकित्सक इस रोग के कारण एवं लक्षणों को भली-भॉंति जानते थे तथा आयुर्वेद के ग्रन्थों में इसकी चिकित्सा के विषय में भी बताया गया है| यह ऐसा रोग है, जो कि शरीर में गुप्त रूप से प्रवेश करता है तथा शरीर को अपना घर बना लेता है| लम्बी समयावधि के रोगों में यह प्रमुख स्थान रखता है| वर्तमान समय में मधुमेह एक आमरोग बनता जा रहा है| इसका अन्दाजा सर्वेक्षणों से लग जाता है| भारत में इस समय अनुमानित रूप से पॉंच करोड़ व्यक्ति इसकी चपेट में हैं| यदि हम यह कहें कि मधुमेह रोग एक महामारी के रूप में फैल रहा है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी|
मधुमेह रोग के चिकित्सकीय कारण
आयुर्वेद में मधुमेह का प्रमुख कारण माना गया है, श्रम का अभाव एवं आरामदेह जीवनचर्या का अनुकरण करना| इसीलिए कहा गया है कि यह रोग अमीरों का रोग है, जो अपने शरीर को जरा-सा भी श्रम नहीं देना चाहते| यह रोग प्राय: उनको ही होता है, ऐसा भी नहीं है, परन्तु चिकित्सा पद्धतियों के विद्वान् मानते हैं कि वर्तमान युग में कृत्रिमता, भौतिकता एवं विलासिता के भँवर में फँसे लोगों का रहन-सहन सुविधाभोगी बनता जा रहा है, जो कि कई रोगों के पनपने का प्रमुख कारण है| इनमें मधुमेह भी प्रमुख स्थान रखता है|
मधुमेह को भली-भॉंति समझने के लिए हमें शारीरिक क्रियाओं को समझना होगा| हमारे शरीर में प्रतिपल कुछ आन्तरिक क्रियाओं का चलन होता रहता है| इन क्रियाओं के फलस्वरूप शरीरगत धातुओं में अनेक परिवर्तन भी होते रहते हैं| इस प्रक्रिया में असंख्य कोषों में विखण्डन भी होता रहता है| विखण्डन से तात्पर्य है कि हमें शारीरिक प्रक्रिया को चलाने के लिए शक्ति एवं ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के पोषक तत्त्वों, वायु, जल एवं प्रकाश की आवश्यकता होती रहती है, जो कि हमें विभिन्न प्रकार के आहार-विहार के माध्यम से प्राप्त होता है| भोजन के रूप में लेने वाले विभिन्न पदार्थों से ही शरीर के आवश्यक तत्त्व यथा – वसा, प्रोटीन, लवण, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स आदि शरीर को प्राप्त होते रहते हैं| ये सभी हमारे शरीर की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं| इन्हीं तत्त्वों में कार्बोहाइड्रेट्स एक ऐसा तत्त्व है, जो कि हमारे शरीर को सर्वाधिक शक्ति प्रदान करता है| यही कार्बोहाइड्रेट्स पाचन क्रिया के परिणामस्वरूप शर्करा में बदल जाते हैं| जब हम शारीरिक श्रम करते हैं, तो उसके लिए आवश्यक शक्ति हमें इसी शर्करा से मिल जाती है और जो शर्करा शेष बचती है, वह रक्त के साथ मिल जाती है| जब शरीर में कोई विकार उत्पन्न हो जाता है, तो शर्करा के आचूषण (एबजोरबेशन) में न्यूनता आ जाती है, तब रक्त में शर्करा का सञ्चय जरूरत से ज्यादा होने लगता है| अधिकता के कारण यह शर्करा मूत्र के साथ भी बाहर निकलने लगता है एवं मधुमेह रोग को उत्पन्न करता है|
शरीर के विभिन्न अंग रक्त में सञ्चित शर्करा का उपयोग शक्ति अर्थात् ऊर्जा के रूप में ही करते हैं| जो तत्त्व शर्करा को ऊर्जा के रूप में परिवर्तित कर देता है, उसे इन्सुलिन के नाम से अभिहित किया जाता है| इस इन्सुलिन का निर्माण आमाशय के एकदम नीचे उदर के ऊपरी हिस्से में स्थित पैंक्रियाज नामक ग्रंथि करती है| पैंक्रियाज ग्रन्थि की एक नलिका आँत के पहले हिस्से में खुलती है| रक्तवाहिनियों के द्वारा इस प्रक्रिया से ग्रंथि को शक्ति मिलती है| इस पैंक्रियाज ग्रन्थि के भीतर भी छिद्रयुक्त ग्रन्थियॉं होती हैं| दरअसल ये एक विशेष प्रकार के कोष होते हैं| सामान्य अवस्था में भी गुर्दे के कोषों से शर्करा के एक सीमित अंश का स्राव होता रहता है, लेकिन मूत्र मार्ग तक आते-आते मध्य में ही शर्करा का आचूषण हो जाता है, जिससे सामान्य तथा स्वस्थ दशा में मूत्र के साथ शर्करा का स्राव नहीं होता, परन्तु जब रक्त में शर्करा की मात्रा सामान्य से अधिक अर्थात् 150 मि.ग्रा (जो कि सामान्य अवस्था में अधिकतम मात्रा है) से अधिक होकर 180 मि.ग्रा. तक पहुँच जाती है, तब गुर्दे शर्करा की इस बढ़ी हुई मात्रा को सोख नहीं पाते, परिणामस्वरूप यह वर्धित हुई शर्करा मूत्र के साथ बाहर निकलने लगती है| चिकित्सकीय भाषा में इसे ग्लाइकोजूरिया कहा जाता है एवं इससे ग्रस्त व्यक्ति को मधुमेह का रोगी कहा जाता है|
मधुमेह रोग के प्रमुख लक्षण
चरकसंहिता में मधुमेह रोग के लक्षण के विषय में लिखा गया है कि प्रकुपित वायु के कारण जो मनुष्य रस में कषाय, मधुर, वर्ण में पाण्डु और स्पर्श में रूक्ष मूत्र त्याग करता है, उसे मधुमेह का रोगी समझना चाहिएतथा यह असाध्य रोग होता है|2
इस रोग में रोगी को रोग के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं :
1. भूख अधिक लगना|
2. वजन कम होना|
3. बार-बार पेशाब जाना|
4. जननाङ्गों, जॉंघों और पेशाब की जगह पर खुजली की शिकायत रहना|
5. फोड़े-फुंसियों का होना|
6. नेत्र ज्योति का कम होना|
7. घाव का देर से भरना अथवा न भरना|
8. जॉंघों के ऊपरी भाग में मांसपेशियों का कमजोर पड़ जाना, दर्द रहना अथवा जमीन पर से उठने में कमजोरी लगना|
9. हाथ-पैर के जोड़ों में दर्द रहना|
10. खाना खाते समय चेहरे पर अत्यधिक पसीना आना आदि|३
मधुमेह रोग के ज्योतिषीय कारण
इस प्रकार मधुमेह रोग के भौतिक स्वरूप एवं कारण को जान लेने के पश्चात् हमें ज्योतिष के माध्यम से इस रोग से सम्बन्धित शरीर के हिस्सों एवं प्रकृति को समझना चाहिए| उन कारणों का अन्वेषण करना चाहिए, जो कि इस रोग के लिए उत्तरदायी हैं| ज्योतिषशास्त्र में कुण्डली के कौन-से भाव एवं ग्रह इस रोग के कारक होते हैं एवं इनका निर्णय कैसे करते हैं? इसके लिए हमें सर्वप्रथम रोग की सम्भावित ज्योतिषीय उत्पत्ति एवं प्रसारण का विश्लेषण करना पड़ेगा|
मधुमेह रोग के लिए निम्नलिखित प्रमुख स्थितियॉं उत्तरदायी होती हैं:
1. ग्रहों में सूर्य, चन्द्रमा, मङ्गल, गुरु एवं शुक्र लिया जाना चाहिए, वो इसलिए कि सूर्य आत्मा का कारक है एवं रोग से लड़ने की क्षमता इसी ग्रह से प्राप्त होती है| यदि जन्माङ्ग में यह ग्रह कमजोर होगा, तो रोग से लड़ने की क्षमता का अभाव होगा तथा रोग की वृद्धि होगी|
2. चन्द्रमा मन एवं उदर का कारक है, यह ग्रह रक्त का कारक भी माना जा सकता है, क्योंकि रक्त तरल पदार्थ के रूप में होता हैऔर मधुमेह रोग का रक्त के साथ पूर्ण सम्बन्ध है|
3. मङ्गल रक्त एवं पराक्रम का कारक है| शर्करा का विसर्जन रक्त के माध्यम से ही होता है| यदि मधुमेह रोग का प्रभाव नहीं होता, तो यही शर्करा शक्ति एवं ऊर्जा बनकर शरीर का पोषण करती है| साथ ही रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी प्राप्त होती है|
4. गुरु मिष्टान्न (मीठा) स्वाद का कारक है| मधुमेह में शर्करा तत्त्व का विसर्जन होता है, जो कि गुरु ग्रह से सम्बन्धित है|4
5. शुक्र जननेन्द्रिय एवं मूत्ररोग का कारक माना जाता है, क्योंकि शर्करा का विसर्जन मूत्रेन्द्रिय के माध्यम से ही होता है|
6. इन ग्रहों के साथ ही षष्ठ भाव जो कि रोग का है, षष्ठेश जो कि रोग का प्रतिनिधि ग्रह है, अष्टम भाव जो कि लिङ्ग एवं आयु-मृत्यु का है, का विचार प्रमुखता से किया जाना चाहिए|
इनके अतिरिक्त निम्नलिखित योग इस रोग को वर्धित करने में सहायक होते हैं|
1. लग्न में सूर्य एवं सप्तम में मङ्गल हो, तो यह रोग होता है|5
2. यदि षष्ठभाव एवं षष्ठेश तथा अष्टम भाव और अष्टमेश पापग्रहों से पीड़ित हों, तो प्रमेह रोग उत्पन्न होता है|
3. सूर्य, चन्द्रमा, गुरु एवं शुक्र त्रिक भाव में होकर पीड़ित हों अथवा त्रिकेश से युत होकर पीड़ित हों, तो यह रोग होता है|
4. लग्न एवं लग्नेश पीड़ित हों एवं त्रिकभावेशों के साथ हों, तो यह रोग होता है|
5. शनि, सूर्य एवं शुक्र ये तीनों ही पञ्चम स्थान में स्थित हों, तो यह रोग होता है|6
6. षष्ठ स्थान में मङ्गल हो एवं षष्ठेश पापग्रह के साथ हो, तो यह रोग होता है|
7. लग्न पापग्रहों से द्रष्ट अथवा लग्नेश नीच या शत्रु राशि में होने पर अष्टम स्थान शुक्र से युक्त अथवा द्रष्ट हो, तो प्रमेह रोग उत्पन्न करता है|
8. दशम भाव में मङ्गल हो एवं शनि देखता हो अथवा उससे युत हो, तो प्रमेह रोग होता है|
9. गुरु यदि 6, 8, 12 भाव में स्थित हो एवं नीचस्थ हो, तो मधुमेह रोग होता है|
10. शनि एवं राहु यदि गुरु के साथ युति अथवा दृष्टि सम्बन्ध बना रहे हों, तो मधुमेह रोग होता है|
11. यदि शुक्र षष्ठ भाव में स्थित हो एवं गुरु द्वादश भाव में स्थित होकर षष्ठ भाव को देख रहा हो, तो मधुमेह रोग होता है|
12. पञ्चमेश यदि 6, 8, 12 भावों के साथ सम्बन्ध बना रहा हो, तो मधुमेह रोग होता है|
13. यदि गुरु वक्री होकर त्रिक भाव में स्थित हो, तो मधुमेह रोग होता है|
इन योगों के अतिरिक्त रोग से सम्बन्धित ग्रह, भाव एवं शुभाशुभ का विचार करके रोग की कालावधि भी जानी जा सकती है| वैसे तो यह रोग जब एक बार प्रारम्भ होता है, तो मृत्युपर्यन्त ही चलता रहता है| अन्य उपचारों की सहायता से ही इस रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है| निम्नलिखित दशावधि में इस रोग के होने की सम्भावना प्रमुखतया देखी गई है :
1. समराशिगत शुक्र की दशा में यह रोग हो सकता है|
2. सप्तमस्थ शुक्र की दशा में यह रोग हो सकता है|
3. नीचांशस्थ सूर्य की दशा में भी यह रोग हो सकता है|
4. षष्ठस्थ सूर्य की दशा में भी यह रोग हो सकता है|
5. षष्ठस्थ राहु की दशा में भी यह रोग हो सकता है|
6. पापराशिगत राहु की दशा में भी यह रोग हो सकता है|
7. लग्नगत केतु की दशा में भी यह रोग हो सकता है|
8. पापद्रष्ट केतु की दशा में भी यह रोग हो सकता है|
9. राहु की दशा में 6, 8 अथवा12 वें भाव स्थित पापयुत शुक्र की दशा—अन्तर्दशा में भी यह रोग हो सकता है|
10. केतु से 2, 8, 12वें भाव में स्थित मङ्गल की दशा-अन्तर्दशा में भी यह रोग हो सकता है|
11. अष्टम एवं द्वादश भाव में स्थित पापयुत अथवा द्रष्ट राहु की दशा एवं अन्तर्दशा में भी यह रोग हो सकता है|
इस प्रकार मधुमेह रोग का निर्णय एवं कालावधि जान लेने के पश्चात् उसके निवारण के लिए यत्न करना चाहिए|
रोग का उपचार एवं निवारण
रोगों के उपचार के लिए आधुनिक युग में ऐलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद आदि पद्धतियॉं विकसित हैं| ध्यातव्य है कि ज्योतिष इस बात को कदापि नहीं कहती कि ज्योतिषीय उपचार अपनाने के लिए इन उपचारों का प्रयोग बन्द कर देना चाहिए, क्योंकि ज्योतिष के उपचार उपचारों की शृंखला में आध्यात्मिक उपचारों के अन्तर्गत आते हैं| इन आध्यात्मिक उपचारों में तन्त्र—मन्त्र—यन्त्र एवं रत्नों के माध्यम से ज्योतिष के उपाय कारगर हैं तथा प्रत्यक्ष सिद्ध भी हैं|
मधुमेह के रोगी को जो ग्रह पीड़ा दे रहा हो अथवा रोगकारक हो उस ग्रह से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना चाहिए|
गुरुवार को प्रात:काल गाय को चने की दाल एवं शुक्रवार को अन्न खिलाना चाहिए|
ॐ बृं बृहस्पतये नम: एवं ॐ शुं शुक्राय नम: मन्त्र का जप अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होगा|
हीरा भस्म का प्रयोग चिकित्सक के परामर्श से किया जा सकता है|
इस प्रकार ज्योतिष मनुष्य के लिए केवल भविष्य जानने का माध्यम ही नहीं, वरन् सर्वपीड़ानिवारक एक ऐसी औषधि है, जो कि कदापि निष्फल नहीं जा सकती| शर्त केवल यही है कि इसका उपयोग पूर्ण ज्ञान एवं तन्मयता से किया जाए|
सन्दर्भ :
1. चरकसंहिता, निदानस्थानम्, चतुर्थोऽध्याय:, प्रमेहनिदानाध्याय:, 3, त्रिदोषकोपनिमित्ता विंशति: प्रमेहा भवन्ति, विकाराश्चापरेऽपरिसड्ख्येया:|
2. चरकसंहिता, निदानस्थानम्, चतुर्थोऽध्याय:, प्रमेहनिदानाधयाय:, 44, कषायमधुरं पाण्डुं रूक्षं मेहति यो नर:| वातकोपादसाध्यं प्रतीयान्मधुमेहिनम्॥
3. चरकसंहिता, निदानस्थानम्, चतुर्थोऽध्याय:, प्रमेहनिदानाधयाय:, 47
4. फलदीपिका, मन्त्रेश्वर, अध्याय 2, ग्र्रहभेदाध्याय,श्लोक ३, भानो: कटुर्भूमिसुतस्य तिक्तं लावण्यमिन्दोरथ चन्द्रजस्य| मिश्रीकृतं यन्मधुरं गुरोस्तु शुक्रस्य चाम्लं च शने: कषाय:॥
5. जातकतत्त्वम्, षष्ठ विवेक, सू. 107—09, लग्नेऽकेर् मदे भौमे प्रमेह:॥
6. जातकतत्त्वम्, षष्ठ विवेक, सू. 107—09, मन्दार्कशुक्रा: पञ्चमस्था: प्रमेह:॥