Tajik Astrology

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ताज़िक ज्योतिष

सहम के द्वारा घटना के समय का ज्ञान

सहम फलित ज्योतिष के लिए ताज़क ज्योतिष का विशिष्ट योगदान है। मानव जीवन के विविध पक्षों के सम्बन्ध में वर्ष विशेष में फल की प्राप्ति कब होनी है, इसका निर्धारण सहम से किया जाता है। सहम शब्द का शाब्दिक अर्थ है, ‘आशंका करना’ या ‘डरना’। इस प्रकार जीवन के जिन पक्षों के विष्य के सम्बन्ध में व्यक्ति आशंकित रहता है, डरा रहता है अर्थात् सहमा रहता है, उन्हें ही सहम के अन्तर्गत सम्मिलित कर ताज़क ज्योतिष में सहम की अवधारणा की गई है।

सहम के प्रकार

ता़जकशास्त्र में सहम के प्रकारों या संख्या के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। गणेश दैवज्ञ ने 19, केशव ने 25 सहम एवं आचार्य नीलकण्ठ ने 50 सहमों का उल्लेख किया है।
आचार्य नीलकण्ठ ने निम्नलिखित 50 प्रकार के सहम बताएँ हैं :
1. पुण्य सहम, 2. गुरु सहम, 3. ज्ञान (विद्या) सहम, 4. यश सहम, 5. मित्र सहम, 6. माहात्म्य सहम, 7. आशा सहम, 8. समर्थता या सामर्थ्य सहम, 9. भ्रातृ सहम, 10. गौरव सहम, 11. राज सहम, 12. पिता या तात सहम, 13. माता या मातृ सहम, 14. पुत्र सहम,15. जीवन सहम, 16. जल सहम, 17. कर्म सहम, 18. रोग सहम, 19. काम या मन्मथ सहम, 20. कलि सहम, 21. क्षमा सहम, 22. शास्त्र सहम, 23. बन्धु सहम, 24. बन्दक सहम, 25. मृत्यु सहम, 26. परदेश सहम, 27. धन सहम, 28 परदारा या परस्त्री सहम, 29. परकर्म सहम, 30. वणिक, 31. कार्यसिद्धि सहम, 32. विवाह सहम, 33. प्रसूति या प्रसव सहम, 34. सन्ताप सहम, 35. श्रद्धा सहम, 36. प्रीति सहम, 37. बल सहम, 38. देह सहम, 39. जाड्य सहम, 40. व्यापार (हानि-लाभ) सहम, 41. पानीयपात सहम, 42. शत्रु सहम, 43. शौर्य सहम, 44. उपाय सहम, 45. दरिद्र सहम, 46. गुरुता सहम, 47. जलपथ सहम,48. बन्धन सहम, 49. कन्या सहम, 50. अश्व सहम।

सहम साधन

सहम साधन के लिए निम्नलिखित उपकरणों की आवश्यकता होती है :
1. वर्षप्रवेशकालिक ग्रहस्पष्ट एवं लग्न स्पष्ट (शोध्य या शोधक के रूप में)
2. वर्षप्रवेशकालिक भावस्पष्ट (शोध्य, शोधक या शुद्धाश्रय के रूप में)
3. वर्षप्रवेशकालिक समय (वर्षप्रवेश दिवा अथवा रात्रि में है, को निर्धारित करने हेतु)
4. वर्षप्रवेशकालिक दिनांक के सूर्योदय एवं सूर्यास्त।
5. वर्षप्रवेशकालिक कुण्डली अर्थात् वर्ष कुण्डली इत्यादि।
सहम साधन ग्रहस्पष्ट या भावस्पष्ट में से भावस्पष्ट या ग्रहस्पष्ट घटाकर किया जाता है। तदुपरान्त ‘क्षेपक’ जोड़ा जाता है। अन्त में आवश्यकतानुसार ‘सैकता’ किया जाता है, जिसके अन्तर्गत एक राशि सहम में जोड़ी जाती है। जिस (ग्रहस्पष्ट या भावस्पष्ट) में से घटाया जाता है, उसे ‘शुद्धाश्रय’ या ‘शोधक’ और जिस (ग्रहस्पष्ट या भावस्पष्ट) को घटाया जाता है, उसे ‘शोध्य’ या ‘शोध्यर्क्ष’ (शोध्य की राशि) कहा जाता है। जिसे (ग्रहस्पष्ट या भावस्पष्ट को) जोड़ा जाता है उसे ‘क्षेपक’ कहते हैं। सैकता तब किया जाता है,
जब शोध्य और शुद्धाश्रय के मध्य क्षेपक स्थित न हो। ऐसी स्थिति में सैकता के रूप में प्राप्त सहम में एक राशि या 30 अंश जोड़ दिया जाता है। एक राशि जोड़ने के कारण ही इसे ‘सैकता’ (स + एकता) कहा जाता है। वर्षप्रवेश समय दिन अथवा रात्रि होने पर सहम साधन में भिन्नता आ जाती है। एक ही प्रकार के सहम साधन हेतु दिन में जो शोध्य एवं शोधक होते हैं, रात्रि में उनसे भिन्न शोध्य एवं शोधक होते हैं। सहम साधन में इस अन्तर का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है।

निम्‍नांकित तालिका में उपर्युक्त 50 सहमों के साधन के सूत्र दिए गए हैं, उनके आधार पर सहम साधन किया जा सकता है :

क्रम सहम साधन सूत्र (शोधक – शोध्य) + क्षेपक

दिन में वर्षप्रवेश समय रात्रि में वर्षप्रवेश समय 1 पुण्य सहम (चन्द्रस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + वर्षलग्न स्पष्ट (सूर्यस्पष्ट – चन्द्रस्पष्ट) + वर्षलग्नस्पष्ट 2 गुरु सहम (सूर्यस्पष्ट – चन्द्रस्पष्ट) + वर्षलग्न स्पष्ट (चन्द्रस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + वर्षलग्नस्पष्ट 3 ज्ञान सहम (सूर्यस्पष्ट – चन्द्रस्पष्ट) + वर्षलग्न स्पष्ट (चन्द्रस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + वर्षलग्नस्पष्ट 4 यश सहम (गुरुस्पष्ट – पुण्य सहम) + वर्षलग्नस्पष्ट (पुण्य सहम – गुरुस्पष्ट) + वर्षलग्न स्पष्ट 5 मित्र सहम (गुरु सहम – पुण्य सहम) + शुक्रस्पष्ट (पुण्य सहम – गुरु सहम) + शुक्रस्पष्ट 6 माहात्म्य सहम (पुण्य सहम – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (मंगलस्पष्ट – पुण्य सहम) + लग्नस्पष्ट 7 आशा सहम (शनिस्पष्ट – शुक्रस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शुक्रस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 8 सामर्थ्य सहम (मंगलस्पष्ट – लग्नेश स्पष्ट) + लग्न स्पष्ट (लग्नेश स्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्न स्पष्ट 9 भ्रातृ सहम (गुरुस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (गुरुस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 10 गौरव सहम (गुरुस्पष्ट – चन्द्रस्पष्ट) + सूर्यस्पष्ट (गुरुस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + चन्द्र स्पष्ट 11 राज सहम (शनिस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (सूर्यस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 12 तात सहम (शनिस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (सूर्यस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 13 मातृ सहम (चन्द्रमास्पष्ट – शुक्रस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शुक्रस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 14 पुत्र सहम (गुरुस्पष्ट – चन्द्रमा स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (गुरुस्पष्ट – चन्द्रमा स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 15 जीवन सहम (शनिस्पष्ट – गुरुस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (गुरुस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 16 जल सहम (चन्द्रमास्पष्ट – शुक्रस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शुक्रस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 17 कर्म सहम (मंगलस्पष्ट – बुधस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (बुधस्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 18 रोग सहम (लग्नस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (लग्नस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 19 काम सहम (चन्द्रस्पष्ट – लग्नेश स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (लग्नेश स्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 20 कलि सहम (गुरुस्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (मंगलस्पष्ट – गुरुस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 21 क्षमा सहम (गुरुस्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (मंगलस्पष्ट – गुरुस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 22 शास्त्र सहम (गुरुस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + बुध स्पष्ट (शनिस्पष्ट – गुरुस्पष्ट) + बुध स्पष्ट 23 बन्धु सहम (बुधस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (बुधस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 24 बन्दक सहम (चन्द्रमास्पष्ट – बुधस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (बुधस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 25 मृत्यु सहम (अष्टम भाव मध्य स्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + शनिस्पष्ट (अष्टम भाव मध्य स्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + शनिस्पष्ट 26 परदेश सहम (नवम भाव मध्य स्पष्ट – नवमेश स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (नवम भाव मध्य स्पष्ट – नवमेश स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 27 धन सहम (द्वितीय भाव मध्य स्पष्ट – द्वितीयेश स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (द्वितीय भाव मध्य स्पष्ट – द्वितीयेश स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 28 परदारा सहम (शुक्रस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शुक्रस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 29 परकर्म सहम (चन्द्रस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्न स्पष्ट (शनिस्पष्ट – चन्द्रस्पष्ट) + लग्न स्पष्ट 30 वणिक सहम (चन्द्रस्पष्ट – बुधस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (चन्द्रस्पष्ट – बुधस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 31 कार्यसिद्धि सहम (शनिस्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + सूर्यराशीश स्पष्ट (शनिस्पष्ट – चन्द्रस्पष्ट) + चन्द्रराशीश स्पष्ट 32 विवाह सहम (शुक्रस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शुक्रस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 33 प्रसूति सहम (गुरुस्पष्ट – बुधस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (बुधस्पष्ट – गुरुस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 34 संताप सहम (शनिस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + षष्ठ भाव मध्य स्पष्ट (शनिस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + षष्ठ भाव मध्य स्पष्ट 35 श्रद्धा सहम (शुक्रस्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शुक्रस्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 36 प्रीति सहम (ज्ञान सहम – पुण्य सहम) + लग्नस्पष्ट (ज्ञान सहम – पुण्य सहम) + लग्नस्पष्ट 37 बल सहम (गुरुस्पष्ट – पुण्य सहम) + वर्षलग्नस्पष्ट (पुण्य सहम – गुरुस्पष्ट) + वर्षलग्न स्पष्ट 38 देह सहम (गुरुस्पष्ट – पुण्य सहम) + वर्षलग्नस्पष्ट (पुण्य सहम – गुरुस्पष्ट) + वर्षलग्न स्पष्ट 39 जाड्य सहम (मंगलस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + बुध स्पष्ट (शनिस्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + बुधस्पष्ट 40 व्यापार सहम (मंगलस्पष्ट – बुधस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (मंगलस्पष्ट – बुधस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 41 पानीयपात सहम (शनिस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (चन्द्रमास्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 42 शत्रु सहम (मंगलस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शनिस्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 43 शौर्य सहम (पुण्य सहम स्पष्ट – मंगलस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (मंगलस्पष्ट – पुण्य सहम स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 44 उपाय सहम (शनिस्पष्ट – गुरुस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (गुरुस्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 45 दरिद्र सहम पुण्य सहम स्पष्ट (बुधस्पष्ट – पुण्य सहम स्पष्ट) + बुधस्पष्ट 46 गुरुता सहम (सूर्य परमोच्च – सूर्यस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (चन्द्र परमोच्च – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 47 जलपथ सहम (03ऽ15° – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शनिस्पष्ट – 03ऽ15°) + लग्नस्पष्ट 48 बन्धन सहम (पुण्य सहम स्पष्ट – शनिस्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शनिस्पष्ट – पुण्य सहम स्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 49 कन्या सहम (शुक्रस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट (शुक्रस्पष्ट – चन्द्रमास्पष्ट) + लग्नस्पष्ट 50 अश्व सहम (पुण्य सहम स्पष्ट – सूर्यस्पष्ट) + एकादश भाव मध्य स्पष्ट (सूर्यस्पष्ट – पुण्य सहम स्पष्ट) + एकादश भाव मध्य स्पष्ट

सहम स्पष्ट जिस राशि का होता है, उसके स्वामी को ‘सहमेश’ कहते हैं।


सहम के बलाबल का आकलन

सहम के आधार पर फलकथन करने से पूर्व उसके बलाबल का निर्णय करना आवश्यक है। यदि सहम बली नहीं होगा, तो वह निष्‍फल होगा। कोई सहम निम्नलिखित स्थितियों में बली होता है : 1. जो सहम अपने स्वामी और शुभ ग्रह से युत अथवा द्रष्ट हो तथा उसका स्वामी बली हो, तो वह सहम बली होता है। सहम का स्वामी निम्नलिखित स्थितियों में बली होता है : (अ) स्वराशि, अपनी उच्चराशि, मित्र ग्रह की राशि, स्वनवांश, स्वहद्दा में स्थिति, (ब) शुभ भाव में स्थिति, (स) लग्न पर दृष्टि , (द) पंचवर्ग में बली, (य) अपने हर्ष स्थान में स्थित यदि सहमेश की लग्न पर दृष्टि नहीं है, तो वह निर्बल होता है। इसके विपरीत यदि वह समाधिकारी भी हो, तो लग्न को देखने पर उसे बली माना जाता है। इस प्रकार वह सहमेश बली है, जो लग्न को देखता हो। इसके अतिरिक्त उक्त स्थितियों में से जितनी अधिक स्थितियों में सहमेश हो, वह उत्तरोत्तर बली होता है। 2. जो सहम अपने स्वामी या शुभ ग्रहों से युत अथवा द्रष्ट न हो वह सहम निर्बल होता है। 3. जिस सहम का स्वामी वर्षेश से इत्थशाल करता है, उसकी अवश्य प्राप्ति होती है अर्थात् वह बली एवं पूर्णफलदायी होता है। 4. जिस सहम का स्वामी अस्त हो, वक्री हो, नीच हो, अशुभ भावेश एवं पाप ग्रहों से युत, द्रष्ट या इत्थशाल कर रहा हो, वह सहम अपने स्वामी से द्रष्ट होने पर भी निर्बल होता है। 5. शुभ सहम सबल होने पर शुभ फल देते हैं, अशु सहम (रोग, शत्रु, कलि, मृत्यु आदि) निर्बल होने पर शुभफल देते हैं।

सहम की निष्‍फलता

यदि कोई सहम उपर्युक्त स्थितियों के कारण बली है, फिर भी निम्नलिखित स्थितियों में वह निष्‍फल होता है : 1. जो सहम जन्मकुण्डली में बली होता है, तो वर्षकुण्डली में बली होने पर ही फल प्रदान करता है और यदि सहम जन्मकुण्डली में बली नहीं है, तो वर्षकुण्डली में बली होने पर भी वह निष्‍फल होता है। 2. जो सहम अष्टमेश से युत हो अथवा द्रष्ट हो, वह बली होने पर भी निष्‍फल होता है। 3. जो सहम पापग्रहों से युत अथवा द्रष्ट हो, वह बली होने पर भी निष्‍फल होता है। 4. जो सहमेश अष्टमेश अथवा पाप ग्रहों से इत्थशाल या ईसराफ योग का निर्माण करता हो, वह बली होने पर भी निष्‍फल होता है। 5. यदि कोई शुभ सहम वर्ष कुण्डली में षष्ठ, अष्टम या द्वादश स्थान में स्थित हो, तो वह बली होने पर भी निष्‍फल होता है। 6. यदि कोई सहम पाप ग्रहों से युक्त हो और शुभ ग्रहों से द्रष्ट हो, तो उसके मिश्रित फल प्राप्त होते हैं। पहले अशुभ फल प्राप्त होते हैं और बाद में शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस प्रकार युत ग्रह के प्रभावजनित फल पहले और द्रष्टा ग्रह के प्रभावजनित फल बाद में प्राप्त होते हैं। 7. यदि कोई सहम शुभ ग्रहों से युत हो और पाप ग्रहों से द्रष्ट हो, तो शुभफल पहले प्राप्त होते हैं और बाद में अशुभ फल प्राप्त होते हैं 8. जन्मकुण्डली में यदि कोई सहम निर्बलता एवं उक्त कारणों से निष्‍फल है, तो वर्ष कुण्डली में सबल एवं पूर्ण फलयुक्त होने पर भी निष्‍फल ही होता है।

सहम के फलों की समयावधि

यदि कोई सहम जन्मकुण्डली एवं वर्षकुण्डली दोनों में बली है और उपर्युक्त कारणों से निष्‍फल नहीं है, तो उसके फल कब प्राप्त होंगे, इसका निर्धारण निम्नलिखित प्रक्रिया से किया जाता है : 1. सहम स्पष्ट में से सहमेश स्पष्ट को घटाएँ। यदि सहमेश स्पष्ट अधिक होने के कारण सहम स्पष्ट में से नहीं घट रहा हो, तो उसमें 12 राशि या 360 अंश जोड़कर घटाएँ। 2. उक्त प्रक्रिया से प्राप्त शेषफल को अंश, कला, विकला में परिवर्तित कर लें अर्थात् राशि के अंश बना लें। 3. उक्त अंश कलादि में सहम की राशि के स्वोदय पलों से गुणा करें और 300 का भाग लगाएँ। जो लब्धि प्राप्त होती है, वह वर्ष प्रवेश के उपरान्त उन दिनों की द्योतक है, जिसमें सहम के फल की प्राप्ति सम्भव है। 4. यदि सहम और सहमेश का अन्तर शून्य हो अथवा लब्धि शून्य हो, तो सहमेश की दशा में सहम का फल प्राप्त होता है। उदाहरण : यदि किसी जातक का वर्ष विशेष में पुण्य सहम स्पष्ट 02ऽ23°28’14’’ एवं सहमेश बुध के भोगांश 06ऽ24°58’58’’ हैं तथा जयपुर में मिथुन राशि के स्वोदय लग्न पल 302 हैं, तो पुण्य सहम के फलों की प्राप्ति की समयावधि ज्ञात कीजिए। हल : नियमानुसार सर्वप्रथम पुण्य सहम स्पष्ट में से पुण्य सहमेश के स्पष्ट घटाएँगे :

पुण्य सहमस्पष्ट – पुण्य सहमेश स्पष्ट

= 2ऽ23°28’14’’- 6ऽ24°58’58’’

= 7ऽ28°29’16’’ (पुण्य सहम में 12 राशि जोड़कर घटाया गया है)

= 238°29’16’’

नियमानुसार उक्त शेषफल में पुण्य सहम की राशि मिथुन के स्वोदय लग्न पल का गुणा किया जाएगा तथा 300 का भाग लगाया जाएगा :

= 240°04’40’’

इस प्रकार वर्ष प्रवेश से 240 दिनों के भीतर पुण्य सहम का फल प्राप्त होगा।