Prepared by | Avnish Pandey |
Date | January 20, 2013 |
कॅरियर ज्योतिष
कंसल्टेंसी में कॅरियर और ज्योतिष
आधुनिक युग के कॅरियर में कंसल्टेंसी अर्थात् सलाह का व्यवसाय लोकप्रिय कॅरियरों में से एक है।
इस व्यवसाय में बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ बन गई हैं और वे देश-विदेश में अपनी सेवाएँ दे रही हैं। उन कम्पनियों का आकार एवं कारोबार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। यह कॅरियर व्यक्तिगत रूप से भी लोकप्रिय होता जा रहा है। कंसल्टेंट के रूप में व्यक्तिगत स्तर पर भी आज अनेक लोग लाखों रुपए महीने कमा रहे हैं। आधुनिक युग के व्यवसाय अपने लक्षणों एवं आवश्यक योग्यताओं के कारण जटिल होते हैं। यही कारण है कि वे किसी एक ग्रह या भाव या भावेश से सम्बन्धित नहीं होते, वरन् वे कई ग्रह, भाव एवं भावेशों के संयुक्त प्रभाव से उत्पन्न होते हैं। कंसल्टेंसी के क्षेत्र में जाने के लिए जो ग्रह, भाव एवं भावेश उत्तरदायी हैं,
उनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं :
1. सूर्य,
2. चन्द्रमा,
3. बुध,
4. गुरु,
5. लग्न एवं लग्नेश,
6. द्वितीय भाव एवं भावेश,
7. तृतीय भाव एवं भावेश,
8. पंचम भाव एवं भावेश,
9. दशम भाव एवं भावेश,
10. एकादश भाव एवं भावेश।
कंसल्टेंट के लिए प्रभावशाली व्यक्तित्व होना आवश्यक है। इसमें व्यक्ति जिन्हें सलाह दे रहा है, उनका नेतृत्व करता है। इसके लिए जन्मपत्रिका में सूर्य का बली होना आवश्यक है और उसका उपर्युक्त भाव एवं भावेशों से सम्बन्ध होना भी आवश्यक है। यदि जन्मकुण्डली में सूर्य निर्बल होगा, तो जातक अच्छा कंसल्टेंट नहीं बन पाता। उसकी सलाह ले ही कितनी ही लाभदायक रही हो, परन्तु उसका श्रेय जातक को नहीं मिल पाता। जब श्रेय नहीं मिलता तो जातक कंसल्टेंट के व्यवसाय में सफल नहीं हो पाता। इसलिए सूर्य का बली एवं उपर्युक्त भाव-भावेशों से सम्बन्ध होना आवश्यक है। कंसल्टेंसी के व्यवसाय में विचारों में नवीनता होना आवश्यक है। व्यक्ति जितना नवीनता से युक्त होगा, उतना ही श्रेष्ठ कंसल्टेंट कहलाता है। विचारों में नवीनता के लिए चन्द्रमा उत्तरदायी होता है। चन्द्रमा की बली स्थिति और उपर्युक्त भाव-भावेशों से उसका सम्बन्ध यदि जन्मकुण्डली में हो, तो जातक अच्छा कंसल्टेंट बनता है। कंसल्टेंट के लिए सम्बन्धित क्षेत्र का विशेषज्ञ होना आवश्यक है। उसके पास जितनी अधिक जानकारियाँ होंगी उतना ही वह प्रभावशाली कंसल्टेंट बनता है। जानकारियों के विश्लेषण की क्षमता भी उसमें होनी आवश्यक है। वह अपने विश्लेषण के आधार पर एक प्रोफेशनल राय बनाकर अपने ग्राहकों को सलाह देता है। इसके अलावा उसमें अच्छी योजनाएँ बनाने तथा योजनाओं के क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार करने की योग्यता होना भी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उसमें प्रबन्धन की योग्यता भी जरूरी है, क्योंकि एक प्रकार से वे प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का कार्य करते हैं। इन सभी योग्यताओं के लिए जन्मपत्रिका में बुध का बली एवं शुभ स्थानों में होना आवश्यक है। साथ ही, इसका उपर्युक्त भाव एवं भावेशों से सम्बन्ध भी जरूरी है। कंसल्टेंट के लिए सबसे बड़ी योग्यता सम्प्रेषण कला होती है। सफल कंसल्टेंट के लिए इस कला में निपुण होना आवश्यक है। सम्बन्धित क्षेत्र का ज्ञान होना एक बात है, परन्तु उस ज्ञान को अपने ग्राहकों को समुचित रूप से सम्प्रेषित कर पाना बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। उसकी वाणी भी प्रभावशाली होनी चाहिए। ये सभी योग्यताएँ तभी सम्भव हैं, जबकि जन्मपत्रिका गुरु की स्थिति प्रबल हो। साथ ही उसका सम्बन्ध उपर्युक्त भाव एवं भावेशों से हो। लग्न एवं लग्नेश व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं उसकी अभिरुचि का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि उपर्युक्त ग्रहों का सम्बन्ध लग्न एवं लग्नेश से हो, तो जातक कंसल्टेंसी के व्यवसाय में सफल होता है। तृतीय भाव एवं तृतीयेश उस क्षेत्र का संकेत देते हैं, जिसमें कि व्यक्ति अपने कौशल एवं पराक्रम का प्रदर्शन करता है। पंचम भाव एवं पंचमेश जातक के शिक्षा से सम्बन्धित हैं। दशम भाव एवं दशमेश कर्म के सूचक हैं, तो एकादश भाव एवं एकादशेश उस क्षेत्र का संकेत करते हैं, जिससे व्यक्ति को आय की प्राप्ति होती है। यदि उक्त भाव एवं भावेशों का सम्बन्ध उपर्युक्त ग्रहों से बनता हो, तो जातक कंसल्टेंसी के व्यवसाय में जाता है और सफल होता है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि उक्त भाव एवं भावेश बली भी हों। यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि कंसल्टेंसी के विविध क्षेत्र हैं। जैसे वित्तीय क्षेत्र, आईटी क्षेत्र, मार्केटिंग, निर्माण सम्बन्धी क्षेत्र, अवकाश एवं पर्यटन से सम्बन्धित क्षेत्र, स्वास्थ्य सम्बन्धी क्षेत्र, मानव संसाधन से सम्बन्धित क्षेत्र इत्यादि। इन क्षेत्रों से सम्बन्धित ग्रहों का सम्बन्ध होना भी आवश्यक है। उदाहरण के लिए तकनीकी क्षेत्र यदि हो, तो मंगल का सम्बन्ध होना आवश्यक है, उसी प्रकार मानव संसाधन से सम्बन्धित क्षेत्र हो अर्थात् एचआर कंसल्टेंसी हो, तो शनि का सम्बन्ध होना भी आवश्यक है।
अब कुछ उदाहरण कुण्डलियों के माध्यम से उपर्युक्त सिद्धान्तों को घटित होते हुए देखते हैं।
उदाहरण – 1
जन्म कुण्डली
नवांश कुण्डली
जन्म दिनांक | 16 अप्रैल, 1963 |
जन्म समय | 23:45 बजे |
जन्म स्थान | मेरठ |
उपर्युक्त जन्मपत्रिका मैनेजमेंट कन्सलटेंसी की एक प्रतिष्ठित कंपनी में उच्चाधिकारी की है।
जातक ने आई.आई.टी. करने के उपरान्त आई.आई.एम. किया और मैनेजमेंट में ही विदेशी यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। जन्मपत्रिका में लग्न में चन्द्रमा स्थित है और लग्नेश गुरु चतुर्थ भाव में स्वराशि का होकर हंस योग बना रहा है। चन्द्र-गुरु की पारस्परिक स्थिति से गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है। पंचम भाव में भाग्येश सूर्य उच्च राशिस्थ है और बुध के साथ श्रेष्ठ बुधादित्य योग का निर्माण कर रहा है। साथ ही, यह युति लक्ष्मीनारायण योग का भी निर्माण कर रही है। पंचमेश मंगल यद्यपि नीचराशि में है, परन्तु उसका नीच भंग भी हो रहा है। शनि-मंगल की परस्पर दृष्टि ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई प्रदान की। वहीं पंचम भाव में सूर्य-बुध की युति तथा लग्न नवांशेश बुध की उच्च नवांशस्थ स्थिति ने उन्हें आई.आई.एम. जैसे विश्वस्तरीय प्रबन्धन संस्थान से प्रबन्धन की डिग्री हासिल की और विदेशी संस्थान से प्रबन्धन में पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। धनु लग्न का व्यक्ति नैसर्गिक रूप से परामर्शक होता है। उसमें जब लग्नेश गुरु की स्थिति शुभ हो और उसका कर्म आदि भावों से सम्बन्ध हो, तो जातक को कंसल्टेंसी जैसे पेशे में ले आता है।
उदाहरण – 2
जन्म कुण्डली
नवांश कुण्डली
जन्म दिनांक | 22 अप्रैल, 1979 |
जन्म समय | 10:45 बजे |
जन्म स्थान | दिल्ली |
उपर्युक्त कुण्डली एक युवा आर्किटेक्ट की है।
दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेज से बी.आर्क. करने के पश्चात् दो वर्ष तक विदेश में एक फर्म में काम करने के उपरान्त अब दिल्ली में ही स्वयं का कंसल्टेंसी व्यवसाय आरम्भ किया है। कुछ ही वर्षों में उनका यह व्यवसाय उम्मीद से अधिक सफल रहा है। अब उनके पास बड़े-बड़े होटलों के प्रोजेक्ट हैं। उनके यहाँ 10 से अधिक आर्किटेक्ट काम करते हैं। जन्मपत्रिका में लग्नेश बुध यद्यपि अपनी नीचराशि में है, परन्तु वह पंचमेश शुक्र एवं एकादशेश मंगल के साथ युति सम्बन्ध बना रहा है। इन तीनों की युति तथा लग्न एवं पंचम भाव पर मंगल का प्रभाव और पंचम भाव पर शनि की दृष्टि के फलस्वरूप जातक आर्किटेक्ट के व्यवसाय में आया। द्वितीय भाव में कर्मेश गुरु अपनी उच्चराशि में है, जिसने जहाँ एक ओर श्रेष्ठ सम्प्रेषण कला प्रदान की, वहीं जातक को सफल भी बनाया। एकादश भाव में तृतीयेश सूर्य अपनी उच्चराशि में है, जिसके कारण एक ओर जातक को उम्मीद से अधिक सफलता अर्जित हुई, वहीं वह प्रभावशाली एवं सफल कंसल्टेंट बना। दशम भाव में शुक्र की उच्चराशिगत स्थिति और उस पर दशमेश का दृष्टि प्रभाव होने से जातक होटल के निर्माण में कंसल्टेंसी का व्यवसाय करने लगा।