AS002 Indian Predictive Astrology

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भारतीय फलित ज्योतिष
(Indian Predictive Astrology – AS002)

  1. भारतीय फलित ज्योतिष: परिचय एवं इतिहास।
  2. जन्मकालिक पंचांग आदि के आधार पर फल: युग, प्रवादि संवत्सर, पंचसंवत्रात्मक युग, अयन, गोल, ऋतु, मास, पक्ष, तिथि, वार, करण, योग एवं नक्षत्र के आधार पर फल; योनि, गण, वर्ण, वर्ग, दिवा-रात्रि, होरा, वेला आदि के आधार पर जातक फल।
  3. गण्ड-अभुक्तमूल आदि पर आधारित फल: चतुर्विध गण्डान्त में जन्म का फल, अभुक्त मूल में जन्म का फल, मूल पुरुष, अश्लेषा पुरुष, मूलवृक्ष, अश्लेषा वृक्ष, आनन्दादि योगों के आधार पर जन्मफल, दन्तोत्पत्ती के आधार पर फल, अन्य आधारों पर अशुभ फल।
  4. राशियाँ: राशियों का सामान्य परिचय, आकृति, निवास स्थान, वासदेश, कालपुरुष के अंगों में राशियों का न्यास, राशियों से सम्बन्धित रोग, राशियों की संज्ञाएँ: ह्रस्वादि, क्रूरादि, ओजादि, चरादि, बहिः आदि, ऊर्ध्वादि, शीर्षोदयादि, सलिलादि, चतुष्पदादि, धातु-मूलादि, पंग्वादि, बहुप्रजादि संज्ञाएँ; पुर्ल्लिंग-स्त्रीलिंग राशियाँ, राशियों की दिशाएँ, दिवाबली एवं रात्रिबली राशियाँ, राशियों के तत्त्‍व, राशियों की पित्तादि प्रकृति, राशियों का वर्ण, राशियों के रंग, राशियों का प्लवत्व, दशावतार एवं राशियाँ, राशियों के स्वामी ग्रह, राशियों के स्वामित्व का आधार; राशियों के शुभाशुभ अंश: मृत्युभाग, पुष्कर अंश इत्यादि।
  5. जन्मराशि एवं लग्न राशि: अष्टराशि का सिद्धान्त, जन्मराशि एवं लग्न राशि के आधार पर फल इत्यादि।
  6. द्वादश भावों में राशियों के फल।
  7. ग्रह: ग्रहों का सामान्य परिचय; ग्रहों का संख्‍या, प्रकाश एवं शुभाशुभता के आधार पर वर्गीकरण; ग्रहों की स्व, उच्च, मूलत्रिकोण, नीच एवं अस्त राशि तथा परमोच्चांश एवं परमनीचांश; ग्रहों के राजपद, ग्रहों के रंग, ग्रहों से उत्पन्न वृक्ष, ग्रहों के संचार स्थान, ग्रहों की वयावस्था, वेदों के स्वामी ग्रह, ग्रहों के द्रव्य या धातु, ग्रहों के अधिदेवता, ग्रहों के रत्न, ग्रहों से सम्बन्धित वस्त्र, ग्रहों की दिशाएँ, ग्रहों की ऋतु, ग्रहों के निवासस्थान, ग्रहों के प्रदेश, ग्रहों के लोक, ग्रहों के वर्ण, ग्रहों की पित्तादि प्रकृति, स्त्रीलिंग-पुल्लिंग ग्रह, ग्रहों के तत्त्‍व, ग्रहों के रस, ग्रहों की दृष्टि, अधोमुख एवं ऊर्ध्वमुख ग्रह, ग्रहों से ईश्वर अवतार, ग्रहों के अन्न, ग्रहों की संज्ञाएँ: शीर्षोदयादि, धातु-मूलादि, सत्वगुणादि, शुष्कादि, स्थिरादि संज्ञाएँ; ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्ध: नैसर्गिक ग्रहमैत्री, तात्कालिक ग्रहमैत्री, पंचधा ग्रहमैत्री, नैसर्गिक ग्रहमैत्री का सत्याचार्योक्त सिद्धान्त; ग्रहों के पाचक-बोधक-सकारक-वेधक ग्रह इत्यादि।
  8. ग्रहों के कारकत्व: नैसर्गिक या स्थिर कारकत्व, तात्कालिक या चर कारकत्व, भावेश कारकत्व, भाव स्थितिजन्य कारकत्व।
  9. ग्रहों की राशियों में स्थिति के आधार पर फल।
  10. ग्रहों के फल: ग्रहों की स्वराशि, उच्चराशि, मूलत्रिकोण राशि, अधिमित्रराशि, मित्रराशि, शत्रुराशि, अधिशत्रुराशि एवं नीचराशिगत स्थिति के आधार पर फल।
  11. भाव- भावों का सामान्य परिचय, दृश्य-अदृश्य चक्रार्ध, पूर्वार्ध-पश्चिमार्ध; भावों की संज्ञाएँ: केन्द्र, त्रिकोण, पणफर, आपोक्लिम, उपचय-अपचय, चतुरस्र, चतुष्ट्य, कंटक, त्रिक, दुःस्थान-सुस्थान, लीन, त्रिषडाय, मारक, नेत्र, विष्णुस्थान-लक्ष्मीस्थान, स्त्री-पुरुष स्थान, चर-स्थिर इत्यादि संज्ञाएँ; कालपुरुष के अंगों में भावों का न्यास; भावों के कारकत्व: भाव का नैसर्गिक कारकत्व सिद्धान्त, नैसर्गिक कारकग्रह से भावकारकत्व का सिद्धान्त, भावात् भावम् का सिद्धान्त, द्वादश भावों के नैसर्गिक कारकत्व।
  12. विभिन्न लग्नों के लिए शुभाशुभ भावेश।
  13. भावफल के सामान्य सिद्धान्त: भावफल के परिप्रेक्ष्य में भाव की गणना: लग्नराशि से भावगणना, लग्नभाव से भावगणना, जन्मकालिक चन्द्रराशि से भावगणना, जन्मकालिक सूर्यराशि से भावगणना, सुदर्शनचक्र पद्धति, भाव से भावगणना, नैसर्गिक कारक से भावगणना, भावेश से भावगणना, वर्ग कुण्डली की प्रधानता का सिद्धान्त; भावफल को प्रभावित करने वाले कारक: भाव, भावेश, भाव का नैसर्गिक कारक ग्रह, डिस्पोजिटर इत्यादि।
  14. द्वादश भावों के आधार पर फल: भाव में स्थित ग्रहों का फल (एक से सात ग्रह तक का फल), भाव में स्थित भावेशों का फल, भावेश का विभिन्न भावों में स्थिति के आधार पर फल, भाव से सम्बन्धित विशेषयोग इत्यादि।
  15. योगफल: पंचमहापुरुष योग: रुचक, भद्र, हंस, मालव्य एवं शश, पंचमहापुरुषों के अनुचर; चन्द्रकृत योग: सुनफा, अनफा, दुरुधरा, केमद्रुम, केमद्रुम भंग, चन्द्राधि योग इत्यादि; सूर्यकृत योग: वेशि, वाशी, उयचर; नास योग: आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्‍या योग इत्यादि; राजयोग: ग्रहों की राशिगत स्थिति से निर्मित होने वाले राजयोग, भावगत स्थिति के आधार पर राजयोग, ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर राजयोग, भावेशों के पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर राजयोग, नीचभंग राजयोग, पुष्कल योग, भाग्ययोग, महाभाग्ययोग, षट्पदयोग, वराहयोग, कंटकयोग, हलयोग, महेन्द्रयोग, शंखयोग, सर्पयोग, किंकरयोग, श्रुतियोग, कर्णयोग, कूर्मयोग, पंक्तियोग, नगरयोग, पर्वतयोग, कलशयोग, दोलायोग, पूर्णकुम्योग, सिंहासनयोग, ध्वजयोग, डमरुकयोग, एकावलीयोग, राजहंसयोग, कीर्तिमालायोग, चतुष्कमहोदधि योग, महिपयोग, श्रीछत्रयोग, मरुत्योग, बुधयोग, गजकेसरीयोग, अमलकीर्तियोग, काहलयोग, चामरयोग, भेरियोग, मृदंगयोग, श्रीनाथयोग, श्रीकंठयोग, वैरिंचियोग, सरस्वतीयोग, शारद्योग, मत्स्ययोग, कूर्मयोग, खंगयोग, लक्ष्मीयोग, गौरीयोग, कुसुमयोग, पारिजात योग, कलानिधियोग, कल्पद्रुमयोग, अंशावतार योग, हरियोग, हरयोग, ब्रह्मयोग, वसुमत् योग, विपरीतराजयोग, बुधादित्ययोग, भारतीयोग इत्यादि; धनयोग, बाधकयोग, कालसर्पयोग इत्यादि।
  16. दशाफल: विंशोत्तरीदशापद्धति का सामान्य परिचय, विंशोत्तरीदशा पद्धति और ग्रहों के अष्टादश गुण; सम्पूर्णा-पूर्णा-रिक्तादशा, आरोहिणी-अवरोहिणी दशा, मध्यमा-अधमा दशा, ग्रहों की राशिगत स्थिति के आधार पर दशाफल, ग्रहों की अवस्थाओं के आधार पर फल; सूर्यादिनवग्रहों के महादशा-अन्तर्दशा-प्रत्यन्तर्दशाफल।
  17. जन्मपत्रिका फल प्रतिवेदन लेखन।
  18. रॉडन की श्रेणी व्यवस्था।
  19. मेलापक: नक्षत्रराशि मेलापन: अष्टकूट एवं दशकूट पद्धति, अन्य प्रचलित कूट; ग्रहमेलापन प्रक्रिया: मंगलदोष, वन्ध्या एवं काकवन्ध्या योग, मृतवत्सायोग, कुलनाशयोग, विषकन्यायोग, अल्पायुयोग; भाव-भावेश मेलापन प्रक्रिया: वर और वधू के विभिन्न भावों एवं भावेशों के मध्य सामंजस्य; मेलापक प्रतिवेदन लेखन।